Monday, October 6, 2008

सब बांबे-पंजाब चल गया हुजूर..

New in Hindi daily. Jagran. Oct 05 2008.

पटना। सीतामढ़ी के रुन्नी सैदपुर का एक नाविक 1954 से नाव चला रहा है और बाढ़ से सामना उसके लिए कोई नयी बात नहीं। पर हताश है वह। कहता है-कटौंझा में बांध ने उसे मुश्किल में डाल दिया है। गांव में अब सिर्फ 'ननवैलिड' लोग और महिलाएं बचीं हैं। अब कुछ रहा ही नहीं। गर्मी में भी पानी रहता है। फसल होगी नहीं तो लोग क्या यहां बालू चाटेंगे। दलाल का राज है हुजूर तीन वर्ष से पैसा नहीं मिला है फिर भी लोगों को नाव से पार करा रहे हैं। जितना जवान था सब बांबे और पंजाब चल गया। बिहार के नितिन चंद्रा की डाक्यूमेंट्री 'ब्रिंग बैक बिहार' में बिहार की बेचारगी और राजनीतिक बेफिक्री को बड़े ही सशक्त अंदाज में दिखाया गया है। शनिवार को संग्रहालय परिसर स्थित सभागार में इस डाक्यूमेंट्री का एक विशेष शो आयोजित किया गया। इसमें उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी विशेष रूप से उपस्थित हुए। फिल्म के बाद उनकी त्वरित प्रक्रिया रही-बेहतर कोशिश की गयी है बिहार के मुद्दे व सच को उठाने की। ;'ब्रिंग बैक बिहार' का आरंभ संपूर्ण क्रांति आंदोलन के क्रम में गांधी मैदान में हो रही जेपी की सभा से होता है। इसके बाद गौरवशाली अतीत को दिखाया जाता है। फिर इस अतीत के बीच में यह बात सामने आ जाती है कि बिहार के बीस बाढ़ प्रभावित जिले के लोग किस तरह से पलायन कर चुके हैं। मुंबई में राज ठाकरे के समर्थकों द्वारा तथा असम व पंजाब में किस तरह से बिहारी मजदूरों के साथ मारपीट की घटनाएं हो रहीं हैं। पूणे, दिल्ली व बंगलोर में रह रहे बिहारी छात्रों के सामने इस तरह की परेशानी भी है कि उन्हें अपनी पहचान बताने में मुश्किल है। अच्छे नंबर दिखाने पर हंसते हुए कहते हैं-अरे बिहार.। महाराष्ट्र में बस कंडक्टर तक बिहारी को गाली देता है। इस क्रम तथागत अवतार तुलसी, पूणे के एक छात्र तथा जेएनयू में शोध कर रही एक छात्रा के साक्षात्कार को दिखाया गया है। साइंस कालेज, पटना के एक प्राध्यापक ने डाक्यूमेंट्री में कहा है कि यहां केंद्रीय संस्थान आने चाहिए। आंकड़े दिखाए गए हैं कि एक वर्ष में कई अरब रुपए सिर्फ पढ़ाई के मद में बिहार से बाहर चला जाता है। पर्यटन की भी चर्चा हुई है और पूर्व मुख्य सचिव के के श्रीवास्तव ने यह कहा कि कभी पर्यटन की योजनाओं पर यहां से प्रस्ताव केंद्र को गया ही नहीं। बीच में अर्थशास्त्री मोहन गुरुस्वामी के साक्षात्कार को भी दिखाया गया है। गुरुस्वामी का कहना है कि बिहार के नेताओं ने पूर्व में अपने अधिकार के लिए कुछ किया ही नहीं। इसका असर यह रहा कि हर वर्ष योजना की राशि में सबसे नीचे का नंबर बिहार का रहता था। डाक्यूमेंट्री में दिखाया गया है कि किस तरह से बिहार में संभावनाओं का दोहन नहीं हुआ। आखिर में पूर्व राष्ट्रपति डा. कलाम को बिहार के उत्थान के लिए क्या करना चाहिए यह बोलते हुए दिखाया गया है।

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http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_4879960.html

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