Saturday, October 11, 2008

कुछ यू शुरु हुआ मेरा सफर .....

"ब्रिंग बैक बिहार - मोमेंट औफ अवेकनिंग", यह नाम नही सोचा था मैने | बस एक जुनुन था की कुछ करना है | कुछ तो करना चहिये | मैं महसुस कर सकता था की देश को आजाद कराने के लिये, उस वक्त लोग कैसा सोचते थे | अपनी ही जमीन से बेदखल कर दिये गये हम और देश चुप रहा | १३ फरवरी, रात १०:०० मैं टी. वी देख रहा था | लोग कल्याण, दादर स्टेशनों पर किस तरह जनरल डिब्बे में घुसने की कोशिश कर रहे थे | एक हाँथ से बच्चे को संभाला था और दुसरे हाँथ मे एक मैले से कपडे से लपेटा हुआ कुछ समान जो हम लोग अपने ड्राईं्ग रुम के सोफे पर बैठ कर नही देख सकते | शायद कमाई हुई कुछ मजदुरी, बचाई हुई कुछ ईज्जत, गँवाई हुई रोटी के कुछ टुकडे होंगे और तन को पुरी तरह न ढकने वाले कुछ कपडे |
मैने अपने पडोसी से उसका छोटा सा विडियो कैमरा माँगा तो उसने पुछा, की अभी रात में क्या काम पड गया | मैने उसे बताया तो वह ठीठक गया | घर पर लोगों ने विरोध किया, बहन ने पटना फोन लगा दिया | लेकिन मै निकल चुका था, अपने आँखो से उन जाने वालों की आंखो में देखने | आटो रिक्षा लिया और उसे कुर्ला की तरफ चलने को कहा | कुर्ला मेरे घर से मंबई में कुछ २० किलोमीटर है | कुछ दुर जाने के बाद आटो रिक्षा ने पुछा कि कहाँ जाना है कुर्ला में ?, मैने बोला लोक्मान्य टर्मिनल, आटो रिक्षा ने ब्रेक लगा दिया, बोला वहा नही जायेगा, क्युंकी राज ठाकरे के समर्थकों ने जमकर कुर्ला में सुबह ही तोड-फोड की थी और एक आटो रिक्षा में आग भी लगा दिया था | मैने उसे काफी मनने की कोशिश की लेकिन वह नही चला | मैने दुसरे आटो रिक्षा से पुछा लेकिन कोई तैयार नही हुआ उस रात वहां जाने के लिये | काफी निराशा हुई |
मेरे करीबी मित्र नितिन गाइकवाड, जो की नासिक के ही रहने वाले हैं, उनके सामने मैने यह प्रस्ताव रखा की मेरे पास एक डक्युमँाट्री फिल्म का आइडीया है | मैने उनहे सारा स्क्रिप्ट समझाया तो वह काफी प्रभावित हो गये और हम निकल पडे मुंबई से नासिक की तरफ, मै सोच रहा था की, क्या मैं जो कर रहा हुँ वह ठीक है, इससे क्या कोइ बदलाव आयेगा, क्या लोग देखेंगे मेरी फिल्म को ? लेकिन कही न कही मेरे दिमाग उन जलते हुए आटो रिक्षा, टुटते हुए टैक्सी, मार खाते हुये लोग अ ौर भाषण देते हुये नेता लोग अ ा रहे थे | २५ फरवरी को हम नासिक पहुँचा तो वहाँ की स्थिति काफी दयनिय थी | बताया गया की करीब ५०,००० लोग भाग चुके हैं | मनसे के कार्य्कर्ताओं ने यह एलान कर दिया था की २५ फरवरी को सारे उत्त्र प्रदेश और बिहार के लोग चले जाये | नासिक और मन्माड स्टेशनों पर भारी भीड जमा थी |
पुरे शहर में पोलिस थी | गाडी के अंदर बैथ कर फिल्माकन करना अ ासान नही था | हम पहुचे नासिक के Industrial Belt के पास जहाँ ज्यादा से ज्यादा बिहार अ ौर उत्तर प्रदेश के मज्दुर रहते हैं | वहा पहुन्चा तो देखा सारे घरों के शीशे और खिडकियाँ टुटे हुए हैं | मैने कमरा निकाला अ ौर शूट करना शुरु किया, कुछ लोगों से बात हुई | थोडी देर में पुलिस वालों ने हमे देख लिया और फिर क्या था, हमारा कैमरा वगैरह जब्त कर लिया गया | कई सारे न्युज वालों को स्थानिय लोगों ने भगा दिया था, लेकिन मराठी में थोडी बात-चीत कर लेने की वजह से कोइ ये नही कह सकता था कि मैं बिहारी हुँ | वहाँ लोग यह नही चाह्ते थे की हिन्दी न्युज चैनल वहाँ कुछ भी करे | ३-४ घंटो के बाद हमे पुलिस वालों ने छोड दिया | अन्धेरा हो गया था | अगले दिन हम पहुचे वसंथ गीते के पास, जो की मनसे - नसिक के नेता हैं | उनहोने राज ठाकरे के चल रहे क्रिक्रित्य को सही ठहराया | उनका कहना है की, आज ज्यादातर IAS/IPS, Engineers वगैरह बिहार से आते हैं, बिहार के हैं | तो बिहारी बिहार के लिये कुछ क्युं नही करते | महाराश्ट्र में काम की भीख क्युं मांगते हैं |
नासिक से मै बगं्लूरू गया | क्या शहर है | एक तरफ पटना, दुसरी तरफ जब मैं बगं्लूरू, पुणे, हैदराबाद, गुड्गाँव, नागपुर वगैरह शहरों को देखता हुँ तो मेरे अंदर से प्रश्न उठता है की, आखीर पटना क्युं नही इनके बराबरी का हो पाया | लोग कहते हैं, "होगा ना, धीरे-धीरे होगा | एक दिन में नही न हो जायेगा |" बगं्लूरू में मै तथागत अवतार तुलसी, नवीन शर्मा और कई लोगों से मिला | मुम्बई की शूटिंग में टी. वी सिन्हा ने काफी मदद की | दिल्ली मे मैं Centre for policy Alternatives के President मोहन गुरुस्वामी से मिला तो उनहोने कें्द्र सरकार क पिछ्ले ६० वर्षों क बिहार के प्रति जो एक सौतेला व्यव्हार रहा है, उसकी सारी मिसालें दे डाली | और साथ ही साथ, पिछ्ले ६० सालों में जो नेता बिहार में हुये, उनकी सच्चाई भी बयान की | सबसे ज्यादा कठिन था बिहार में शुट करना, वो इसलिये की, मै बिहारी होते हुए भी पहली बार बिहार के अंदरुनी हिस्सों को देख रहा था और और जो हालत मैने देखी वह देखना कठिन था | बिहार के बाहर हमारी इज्जत नही है, बिहार के अंदर रोटी नही है | यहाँ के युवा, छोटो-मोटी नौकरियों के लिये दिल्ली, मुंबई भागते हैं | शहर के लडके IIT और Medical में जाने के लिये परेशान हैं, वो तो बाहर चले जाते हैं लेकिन कभी लौटते नही हैं | फिल्म के अन्दर जो बाढ के क्षेत्रों में की गयी शूटींग है वो सबसे ज्याद ह्दय विदारक है | .......और भी बहुत कुछ लिखुं्गा.. लिखता ही रहुं्गा...नितिन

6 comments:

ab inconvenienti said...

आप अकेले नहीं हो, उडीसा बंगाल, और कुछ दिनों में छतीसगढ़ भी बिहार के लेवल पर हैं, बस वहां के स्थानीय गुंडे नेताओं की बदौलत. गुजराती, मराठी पंजाबी, दक्षिण भारतीय अपने राज्य का नाम बताते झिझकता नहीं, और कहीं भी रहे लौट कर अपने प्रदेश में ही आता है, निवेश के रूप में ही सही. और बिहारी ....... किसी भी तरह साबित करना चाहता है की मैं बाकी बिहारिओं से अलग हूँ. ठाकरे परिवार ने इससे पहले गुजरातियों, दक्क्षिण भारतियों पर भी निशाना साधा था पर उन्होंने अहमदाबाद जैसी आर्थिक/औद्योगिक राजधानी, बंगलौर जैसी आईटी वैली, कोच्ची, विशाखापतनम जैसे पोर्ट, हैदराबाद जैसे.... बना कर दिखा दिए. बिहार के पासवान, राबड़ी और लालू ने पटना में उद्योग या आईटी क्रांती का सपना भी कभी देखा???

इसके बाद भी बिहार के नेताओं का कोई मजाक उडाता है तो मिर्ची सबसे पहले बिहारियों को ही लगती है. ज़रा सोचो.

शोभा said...

सच की तस्वीर उतारी है आपने. आपका स्वागत है.

प्रदीप मानोरिया said...

आँखे खोलता आलेख स्वागत है मेरे ब्लॉग पर पधारने का आमंत्रण है

अभिषेक मिश्र said...

nischit roop se aapne kuch anchue pahluon ko chua hai,swagat blog parivaar aur mere blog par bhi.

Bipin Pandey said...

Mai ye movie kaha se kharid/dowload kar paunga.
Madad ke liye shukriya.

रचना गौड़ ’भारती’ said...

bahut khoob likhate rahe.